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लेखनी प्रतियोगिता -24-Aug-2022


रात्रि के दूसरे पहर
जब दुनिया सोती है
मेरे मन जैसे कोई
आहट होती है।

दशमी का ये चांद भी
मेरे जैसा लगता है
वही अधूरापन लेकर
जाने किस खोज में जगता है

जब तुम साथ नहीं होती
ये चांद ही साथ निभाता है
सारा हाल तुम्हारा 
मुझ तक ये पहुंचाता है।

रात तुम्हारी यादों की
और दिन मेरी मजदूरी का
ये चांद ही ठीक समझता है
किस्सा मेरी मजबूरी का।

जब कोई नहीं समझता तब
ये रात हमें समझाती है
जुगनू, चांद दिखाकर ये
रात ही मन बहलाती है।


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22 Comments

Mithi . S

26-Aug-2022 02:06 PM

Nice 👍

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Achha likha hai aapne 🌺💐🙏

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Anshumandwivedi426

25-Aug-2022 10:40 PM

सादर धन्यवाद

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